यह लड़का जो पकौड़े की दुकान चला रहा है क्या लगता है वह मेहनत करके आखिर कितना अमीर बन सकता है शायद यह आगे चलकर एक बड़ा सा रेस्टोरा खोल ले या हो सकता है कि पैसे कमाकर एक बड़ा दो मंजिला मकान बना ले इससे ज्यादा क्या ही कर लेगा यह है ना आप भी शायद यही सोच रहे होंगे लेकिन दोस्तों यही वो लड़का है जो आगे चलकर पूरे भारत का सबसे अमीर आदमी बना नाम है धीरूभाई अंबानी.

तो आखिर कैसे एक पकौड़े बेचने वाले इस गरीब लड़के ने 75000 करोड़ की टर्नओवर वाली कंपनी बनाई आज के इस वीडियो में हम इन डेप्थ स्टोरी जानने वाले हैं हां हो सकता है कि यह वीडियो हमारे चैनल पर अपलोड होने वाले जनरल वीडियो से थोड़ी बड़ी हो लेकिन मैं 100% दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर आपने इस वीडियो को पूरा देख लिया तो फिर यह आपकी लाइफ में जरूर बदलाव लेकर.

आएगा तो दोस्तों इस कहानी की शुरुआत होती है 28 दिसंबर 1932 से जब गुजरात के चोरवा गांव के एक मिडिल क्लास फैमिली में धीरज लाल हीरालाल अंबानी का जन्म हुआ था और यही साधारण सा दिखने वाला लड़का आगे चलकर धीरू भाई अंबानी के नाम से फेमस हुआ इनके पिता हीराचंद गोवर्धन भाई अंबानी गांव के ही स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम करते थे और कुछ इसी तरह से जब धीरो भाई अंबानी.

5 साल के हुए तब उनका एडमिशन बहादुर खान जी स्कूल में करा दिया गया हालांकि धीरो भाई अंबानी को पढ़ाई-लिखाई से कोई खास लगाव नहीं था फिर भी पिता के डर से ना चाहते हुए भी उन्हें स्कूल जाना ही पड़ता था अब क्योंकि हीराचंद जी के कुल पांच बच्चे थे और जैसे-जैसे वो बड़े हो रहे थे उन्हें स्कूल की सैलरी से घर चलाने में काफी प्रॉब्लम होने लगी थी और दोस्तों इसी.

गरीबी और तंगहाली से ही परेशान होकर एक दिन धीरू भाई अंबानी ने फैसला किया कि अब वह पढ़ाई छोड़कर कोई काम करेंगे वैसे तो बेटे के इस फैसले से हीराचंद काफी नाराज हुए और उन्हें वापस स्कूल भेजने की कोशिश में लग गए लेकिन धीरो भाई के जिद्द के सामने उन्होंने भी हार मान ली अब दोस्तों यहां धीरो भाई काम तो करना चाहते थे लेकिन आखिर करें क्या यह उन्हें समझ नहीं आ रहा.

था और इस तरह से काम की तलाश में व इधर-उधर घूमते रहे और फिर इसी टाइम पर वह अपने गांव के एक मंदिर पहुंच गए उन्होंने देखा कि अक्सर सुनसान रहने वाले मंदिर परिसर में आज बहुत भीड़ लगी हुई थी जब पता किया तो मालूम पड़ा कि यह भीड़ हर साल फरवरी के महीने में किसी प्राचीन मान्यता की वजह से लगती है अब इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को देखकर धीरो भाई ने.

सोचा कि यहां खड़े-खड़े इन लोगों को भूख तो लगती ही होगी क्यों ना इस मौके का फायदा उठाकर यहां पकड़े बेचे जाएं और दोस्तों अभी तक धीरो भाई को उनके पिता की तरफ से जो भी थोड़ी बहुत पॉकेट मनी मिलती थी वो उसे एक गुल्लक में जमा कर देते थे लेकिन अब उस गुल्लक को तोड़ने का समय आ चुका था उन्होंने बिना किसी देरी के गुल्लक तोड़कर पैसे निकाला उससे ठेला.

खरीदा और मंदिर के पास ही पकड़े बेचने लगे अब दोस्तों इस धंधे से उन्हें शुरुआत में तो बहुत प्रॉफिट हुआ लेकिन कुछ समय के बाद जब श्रद्धालुओं की संख्या कम होने लगी तो फिर उनकी आमदनी भी लगभग ना के बराबर रह गई ऐसे में उन्हें लगा कि अब यहां पर समय बर्बाद करने से कोई फायदा नहीं इसीलिए उन्होंने अपना ठेला बेच दिया और सारे पैसों को बैंक में जमा करा दिया आगे चलकर.

वो फिर से किसी काम की तलाश में लग गए ग और फिर उस दौरान उन्होंने देखा कि बहुत सारे लोग यमन में काम करने के लिए जा रहे हैं और आज से पहले जो भी वहां पर गए थे उनकी फाइनेंशियल कंडीशन काफी बेटर हो गई थी लेकिन इसके पीछे की वजह क्या थी इसका जवाब ढूंढने पर धीरो भाई अंबानी को पता चला कि यमन में इंडिया से कई गुना ज्यादा पैसा बनता है इसीलिए धीरो भाई अंबानी 1950.

के दौरान महज 17 साल की उम्र में अपने बड़े भाई रमणिकलाल के पास में यमन चले गए वहां पहुंचने के बाद से रमणिकलाल ने एबेस एन कंपनी के पेट्रोल पंप पर धीरो भाई अंबानी को काम दिला दिया और यहां काम करते हुए उनकी सैलरी ₹ हर महीने की थी अब दोस्तों इस पेट्रोल पंप पर काम करते टाइम धीरो भाई अंबानी लोगों को कोई अलग-अलग प्रमोशनल मेथड से इनकरेज करते थे कि वह.

ज्यादा से ज्यादा पैसों का पेट्रोल डलवाए अब दोस्तों उनके ऐसा करने की वजह से पेट्रोल पंप का रेवेन्यू काफी ज्यादा बढ़ गया और उनके काम से खुश होकर उन्हें पेट्रोल पंप का मैनेजर बना दिया गया अब क्योंकि प्रमोशन होने की वजह से पेट्रोल पंप पर काम करने के बाद भी धीरू भाई के पास काफी टाइम बच जाता था तो में उन्होंने सोचा कि इस खाली टाइम में क्यों ना एक जॉब.

कर ली जाए और फिर ऐसा सोचकर वह एक जगह पर क्लर्क के तौर पर भी काम करने लगे अब दोस्तों हम इंडियन दुनिया के किसी भी कोने में क्यों ना चले जाएं पर अपनी चाय की आदत को नहीं बदल सकते और धीरू भाई को भी चाय पीना बहुत पसंद था अब वैसे तो इसके लिए उनके पास दो ऑप्शंस थे या तो वह रोड साइड पर 10 पैसे की चाय पिएं या फिर किसी फाइव स्टार होटल में ₹1 की लेकिन यहां पर धीरू.

भाई ने ₹ वाली चाय को ही चुना ताकि वह चाय की चुस्कियां लेते लेते आसपास के अमीर लोगों की बातों को सुनकर यह जान सकें कि आखिर वह ऐसा क्या करते हैं कि वह इतने अमीर हैं ऐसे ही एक दिन जब वह चाय पी रहे थे तभी उन्होंने अपनी बगल वाली टेबल पर बैठे दो लोगों की बातें सुनी जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को बता रहा था कि क्या तुम्हें पता है हमारे यमन में जो चांदी के.

रियाल के सिक्के चलते हैं ना उनमें लगी चांदी की कीमत इस रियाल से भी ज्यादा है यानी कि ₹1000000 की चांदी है अगर कोई इसे पिघलाकर निकाल ले तो फिर उसके पास पैसे ही पैसे होंगे अब वैसे तो यह अमीर लोग इस बात को बस मजाक मजाक में कर रहे थे लेकिन धीरू भाई ने इसे सीरियसली ले लिया उन्होंने एक मशीन खरीदी और फिर लाखों की संख्या में सिक्कों को.

पिघला शुरू कर दिया जैसे-जैसे धीरू भाई का यह काम आगे बढ़ा मार्केट में सिक्कों की कमी होने लगी और गवर्नमेंट भी इस बात से परेशान थी कि आखिर यह सिक्के जा कहां रहे हैं और दोस्तों जब गवर्नमेंट ने इस बात की जांच के लिए इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई तब धीरू भाई अंबानी का नाम सामने आया हालांकि जब तक पुलिस उनके ठिकाने पर पहुंचती धीरो भाई सारे पैसे इकट्ठा करके वहां से इंडिया.

ने चल चुके थे यह साल था 1958 का जब धीरू भाई वापस अपने घर पहुंचे और जब उनके पिता ने यह सुना कि वह नौकरी छोड़कर आए हैं तो वह काफी ज्यादा नाराज हुए रिश्तेदारों ने भी काफी क्रिटिसाइज किया लेकिन फिर भी उन्होंने किसी की भी बातों पर ध्यान नहीं दिया दोस्तों यमन से वापस आकर कुछ समय गांव में बिताने के बाद उन्होंने कोकला बहन से शादी कर ली और फिर उसके बाद अपना.

बिजनेस स्टार्ट करने के लिए मुंबई चले गए उ 1958 में ही उन्होंने 0000 की पूंजी के साथ यहां पर व्यापारियों ने एक यूनियन बना रखा है और वह सभी मिलकर किसी भी नए व्यापारी को इस इंडस्ट्री में एंटर नहीं होने देते हैं और अगर किसी को एंटर करना भी है तो उसे पहले यूनियन के लीडर से परमिशन लेनी पड़ती है इस तरह से एक नए फील्ड में उतरना.

धीरो भाई अंबानी के लिए काफी चैलेंजिंग हो गया था हालांकि काफी मेहनत मशक्कत के बाद उन्हें यह परमिशन तो मिल गई लेकिन इसके बाद उन्हें पता चला कि वह जिन फैक्ट्री से सूद खरीद रहे थे उन्होंने भी एक यूनियन बना रखा है और जिन्हें फाइनल प्रोडक्ट बेचा जाता था उनका भी एक अलग यून न है इस तरह से यह सभी मिलकर इन बीच के ही व्यापारियों को लूट रहे थे क्योंकि एक तो.

फैक्ट्री वाले सूत महंगे में सेल कर रहे थे और दूसरी तरफ खरीदार उसे सस्ते में ले रहे थे बीच में नुकसान हो रहा था धीरू भाई और उनके जैसे कई सारे व्यापारियों का यह सब देखने के बाद धीरू भाई ने एक बहुत बड़ा स्टेप लिया और अपने यूनियन के सभी मेंबर्स को इकट्ठा करके यह डिसाइड किया कि हम सब फैक्ट्री से सस्ते में माल उठाएंगे और महंगे में बेचेंगे ताकि हमें भी अपने हक.

का पूरा प्रॉफिट मिल सके हालांकि ऐसा करने पर मुंबई के कई बड़े व्यापारी नाराज हो गए और इसीलिए उन्होंने एक आईएएस ऑफिसर को पैसे खिलाकर उस जगह पर ताला लगवा दिया जहां पर खरीदारी के लिए बोले लगाई जाती थी लेकिन दोस्तों धीरूभाई अंबानी का दिमाग भी किसी से कम थोड़ी था उन्होंने जब गोदाम में ताला लगा देखा तो अपना विरोध जताने के लिए यूनियन के मेंबर्स के साथ मिलकर अपना.

सारा माल उसी आईएएस ऑफिसर के घर के सामने रखवा दिया अब कुछ ही घंटों में उस आईएस ऑफिसर के घर पर बड़े ऑफिशल्स आने वाले थे और अगर वह घर के सामने बिखरी हुई बोरियों को देख लेते तो फिर उन्हें आईएएस के हरकतों का पता लग जाता इसी वजह से अपनी नौकरी को बचाने के लिए कुछ ही मिनटों के अंदर उस आईएएस ऑफिसर ने ताला खुलवा दिया और धीरो भाई समेत उन सभी व्यापारियों का.

कारोबार फिर से चल पड़ा अब दोस्तों इसके कुछ साल के बाद तक तो सब कुछ सही चल रहा था लेकिन फिर चंपकलाल दमानी और धीरो भाई अंबानी के बीच में डिस्प्यूट होने लगी असल में दोनों का बिजनेस माइंडसेट बहुत ज्यादा अलग-अलग था इसलिए 1965 में चंपक लाल दमानी ने पार्टनरशिप खत्म करने की सोची और फिर दोनों अलग हो गए 1966 में धीरो भाई अंबानी ने गुजरात के नरोदा में टेक्सटाइल मिल.

शुरू की और फिर यहां से उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा उसी दौरान सरकार रिप्लेनिशमेंट लाइसेंस लेकर आई जिसके तहत व्यापारी बाहर के देशों से सस्ते फैब्रिक मंगा सकते थे लेकिन शर्त यह थी कि उसे कुछ नया बनाकर वापस से दूसरे देश में एक्सपोर्ट करना होगा यहां पर धीरो भाई अंबानी ने चालाकी दिखाते हुए अपनी सारी सेविंग से विदेशी फैब्रिक खरीद लिया और.

फिर उससे तरह-तरह के आउटफिट्स जैसे कि टीशर्ट शॉल और शॉर्ट्स बनाने लगे इस नए कारोबार के लिए ब्रांड नेम रखा गया था विमल जो कि उनके बड़े भाई रमणिकलाल अंबानी के बेटे विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था अब मशीनें लग चुकी थी कपड़ों का प्रोडक्शन भी भारी मात्रा में कर लिया गया था लेकिन उन्हें बाजार में उतरने से रोकने के लिए दूसरे टेक्सटाइल मालिकों ने एक चाल चली.

एक्चुअली उन्होंने अपने सभी रिटेलर से यह कह दिया था कि अगर धीरो भाई अंबानी से आपने माल खरीदा तो फिर वोह उन्हें आगे से माल नहीं देंगे लेकिन दोस्तों दूसरे टेक्सटाइल मालिकों की यह साजिश भी धीरो भाई अंबानी को रोक नहीं सकी धीरू भाई पूरे देश में घूमे और रिटेलर्स को यह भरोसा दिलाया कि वह माल उन्हीं से ही खरीदें उन्होंने सभी रिटेलर से यह वादा किया कि.

अगर नुकसान होगा तो उनके पास आना और अगर मुनाफा हुआ तो अपने पास रख लेना धीरू भाई की यह बात थोक व्यापारियों को भी भा गई और उन्होंने उनसे जमकर कपड़े की खरीदारी की अब चूंकि पॉलिस्टर की क्वालिटी मार्केट में मौजूद बाकी ब्रांड्स के मुकाबले बहुत ही बढ़िया थी इसीलिए विमल के कपड़ों की डिमांड बहुत तेजी से बढ़ने लगी और दोस्तों एक मौका तो ऐसा भी आया जब एक ही दिन में.

देश भर में विमल के 100 शोरूम्स का उद्घाटन किया गया और विमल उस जमाने का नंबर वन पॉलिस्टर ब्रांड बन गया इसके अलावा वर्ल्ड बैंक की टीम ने जब धीरू भाई के नरोदा स्थित कपड़ा मल का इंस्पेक्शन किया तो फिर उन्होंने इसे इंडिया का बेस्ट टेक्सटाइल मील कहा साथ ही यहां पर बने हुए कपड़े डेवलप्ड कंट्री के स्टैंडर्ड्स पर भी एक्सीलेंट साबित हुए लेकिन दोस्तों यह.

सफर धीरू भाई अंबानी के लिए इतना आसान नहीं था क्योंकि जब इनके कंपटीसन भाई अंबानी रिप्लेनिशमेंट का गलत फायदा उठा रहे हैं तब उन्होंने धीरो भाई अंबानी पर केस कर दिया इसके बाद से धीरो भाई अंबानी ने यह सफाई दी कि शर्तों में यह कहां लिखा गया है कि बाहर के देशों से माल मंगाकर 100% प्रोडक्ट को ही एक्सपोर्ट कर देना है असल में धीरो भाई अंबानी.

विदेशी फैब्रिक से बनाए गए कपड़ों में से कुछ हिस्सा फॉरेन मार्केट के लिए रवाना कर देते थे और फिर बाकी का डोमेस्टिक के लिए रख लेते थे और दोस्तों उनकी इस स्ट्रेटजी से उनके बिजनेस को काफी प्रॉफिट भी हुआ साथ ही विमल देश सहित विदेशों में भी अपनी अच्छी पहचान बनाने में में कामयाब हो गया इस एरिया में मिली सफलता के बाद धीरो भाई अंबानी ने धीरे-धीरे कई और भी दूसरे.

सेक्टर्स में अपने बिजनेस को एक्सपेंड करना शुरू कर दिया 8 मई 1973 को कंपनी का नाम reliance1 77 के बीच इसका एनुअल टर्नओवर ₹ करोड़ हो गया था अब दोस्तों आया जनवरी 1978 जब धीरो भाई अंबानी ने आजाद भारत का पहला आईपीओ लाने का विचार किया और फिर अपनी कंपनी को बंबे और अहमदाबाद स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट कर दिया ₹10 शेयर.

प्राइस पर 2.8 मिलियन इक्विटी शेयर्स का आईपीओ पेश किया गया जिस पर इन्वेस्टर्स ने जमकर भरोसा जताया और 58000 इन्वेस्टर्स ने इसमें इन्वेस्ट किया था इस स्टॉक से लोगों ने भरपूर प्रॉफिट कमाया और यह इतना पॉपुलर हो गया कि जब 1986 में कंपनी की एनुअल शेयर होल्डर मीटिंग रखी गई तो फिर उस टाइम पर 300 शेयर होल्डर्स उसमें शामिल हुए जो कि इंडियन कॉरपोरेट हिस्ट्री में एक.

रिकॉर्ड बन गया था कमाल की बात तो यह थी कि उस टाइम पर पर बॉम्बे में एक भी ऐसा हॉल नहीं था जो कि इतने लोगों की कैपेसिटी को होल्ड कर सके इसी वजह से इस मीटिंग को एक मैदान में ऑर्गेनाइज किया गया था 1980 में धीरो भाई अंबानी ने महाराष्ट्र के पाताल गंगा में पॉलिस्टर फाइबर धागे का कारखाना खोला और काफी कोशिशों के बाद तेल के उत्पादन के लिए भी सरकार से लाइसेंस.

हासिल कर ली इस तरह एक टाइम पेट्रोल पंप पर काम करने वाले धीरू भाई अंबानी की अपनी खुद की ऑयल प्रोडक्शन कंपनी हो गई इसके बाद आया 16 फरवरी 1986 जब धीरू भाई को पहला हार्ट अटैक आया एक्चुअली उन्होंने अपने बेटे मुकेश अंबानी को बताया कि उनकी पीठ में काफी तेजी से दर्द हो रहा है और इससे पहले कि उन्हें हॉस्पिटल लेकर जाया जाता वो अनकॉन्शियस हो गए थे अब जब मुकेश.

अंबानी उन्हें लेकर अफरा-तफरी में हॉस्पिटल पहुंचे तो डॉक्टर्स ने कहा कि अगले 42 घंटे इनके लिए बहुत ज्यादा क्रिटिकल हैं लेकिन दोस्तों इतनी सीरियस हालत होने के बावजूद होश आते ही उन्होंने अपने बेटे को देखते हुए कहा तुम परेशान मत होना बेटा मैं सब ठीक कर दूंगा इस स्ट्रोक के बाद से धीरो भाई अंबानी का एक हाथ पैरालाइज हो गया था लेकिन धीरो भाई अंबानी.

ने डिसाइड किया कि यह उनकी कमजोरी नहीं बनेगा इसीलिए लगातार 3 महीनों तक उन्होंने खूब एक्सरसाइज की डाइट पर पूरा ध्यान दिया और लाइफस्टाइल में बदलाव किया इसका असर यह हुआ कि धीरू भाई का हाथ पहले से काफी ठीक हो गया अब दोस्तों आगे चलकर धीरो भाई अंबानी एक ऐसे गोल्डन एरा में एंटर हुए जब इनके बिजनेसेस कई सारे सेक्टर्स में तेजी से.

एक्सपेंड होने लगे एक्चुअली 1992 में धीरो भाई अंबानी ने वो करके दिखाया जो कि उस समय की बड़ी-बड़ी इंडियन कंपनीज ने सपने में भी नहीं सोचा था असल में इस साल कंपनी ने ग्लोबल मार्केट से भी फंड जुटाना शुरू कर दिया और ऐसा करने वाली reliance1 596 में धीरो भाई अंबानी ने 9x यूएसए के साथ मिलकर अपनी टेलीकॉम कंपनी reliance1 प्राइवेट लिमिटेड की भारत में.

शुरुआत की इसके बाद से 1998 से 2000 के दौरान धीरो भाई अंबानी ने दुनिया के सबसे बड़े रिफाइनरी पेट्रो केमिकल्स को गुजरात के जामनगर में ओपन किया और दोस्तों इस टाइम तक धीरो भाई अंबानी का इतना बड़ा नाम हो गया था कि उन्हें देश सहित विदेशों में भी पॉपुलर मिलने लगी थी यह पॉपुलर तब और भी इंक्रीज हो गई जब साल 1996 98 और 2000 यानी कि 3 साल उन्हें एशिया वीक मैगजीन ने.

पावर 50 मोस्ट पावरफुल पीपल इन एशिया की लिस्ट में शामिल किया था ये इंडिया के लिए बहुत ही गर्व की बात थी और इससे भारत के पोटेंशियल्स के बारे में बाकी के देशों को भी अंदाजा होने लगा था इतना ही नहीं 15 जून 1998 को धीरो भाई अंबानी पहले इंडियन बने जिन्हें बेहतरीन लीडरशिप के लिए द वर्टन स्कूल यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया की तरफ से डींस मेडल से नवाजा गया था इसके.

अलावा 1999 में धीरुभाई अंबानी को बिजनेसमैन ऑफ द ईयर के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया और 2001 में द इकोनॉमिक टाइम्स ने इन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट का अवार्ड दिया और दोस्तों कहते हैं कि यह सब अवार्ड और सम्मान भले ही सिर्फ धीरू भाई अंबानी को मिले लेकिन उनकी इस सफलता के पीछे उनकी वाइफ कोकिला बेन का भी पूरा हाथ था एक्चुअली जब धीरो भाई अंबानी मुंबई.

शिफ्ट हुए थे तब उन्होंने ने कोकिला बैन को इंग्लिश सीखने के लिए कहा था ताकि व्यापार में वह भी उनकी मदद कर सकें इसके अलावा धीरो भाई अंबानी जब भी कोई नया काम शुरू करने जाते थे तो फिर उस पर कोकिला बैंड का विचार जरूर मांगते थे और दोस्तों इसी तरह के सपोर्ट और मेहनत का ही नतीजा है कि मसाले और पॉलिस्टर बेचने से शुरुआत करने वाले धीरूभाई अंबानी साल 2000 तक देश.

के सबसे अमीर लोगों में शुमार हो चुके थे उन्होंने 350 स्क्वा फीट के कमरे से अपने बिजनेस की शुरुआत की थी और फिर देखते ही देखते ने लगी कहा जाता है कि अपने सपने को पूरा करने के लिए अंबानी बेहद डिसिप्लिन लाइफ जीते थे उन्होंने अपने काम करने के घंटे भी तय कर रखे थे और कभी भी 10 घंटे से ज्यादा काम नहीं करते थे लेकिन पहले हार्ट.

अटैक के बाद से उनकी तबीयत लगातार खराब रहने लगी थी जिसके चलते उन्हें हर थोड़े दिनों में ही हॉस्पिटल्स का चक्कर लगाना पड़ता था लेकिन दोस्तों फिर आया 24 जून 2002 का वो दिन जब धीरू भाई अंबानी को फिर से एक डेडली स्ट्रोक आया और उन्हें मुंबई के ब्रिज कैंडी हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया यहां पर डॉक्टर्स ने बहुत कोशिश की लेकिन लगातार ट्रीटमेंट के बाद भी उनकी.

हालत में कोई सुधार देखने को नहीं मिला और इसी वजह से आखिरकार 6 जुलाई 2002 को 69 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया और अरबों का साम्राज्य अपने बेटों के लिए छोड़ गए जिस समय उनकी मृत्यु हुई थी उस समय कंपनी का टर्नओवर ₹ जड़ हो गया था और ग्लोबल fortune4 लिस्ट में भी रिलायस ने अपनी जगह बना ली थी कमाल की बात तो यह है कि इतनी दौलत और शौहरत.

हासिल करने के बाद भी उन्होंने एक बहुत ही साधारण जीवन जिया और अपनी रूट्स को कभी नहीं भूले एक मामूली से पकौड़े बेचने वाले के लिए जीरो से शुरुआत करके कई पीढ़ियों तक चलने वाला एक साम्राज्य खड़ा करना ऑलमोस्ट इंपॉसिबल था लेकिन धीरो भाई अंबानी ने यह काम करके दिखा दिया

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